GP:प्रवचनसार - गाथा 163 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[अपदेसो] अप्रदेशी-बहुप्रदेश रहित है । प्रदेश रहित वह कौन है? [परमाणू] पुद्गल परमाणु प्रदेश रहित है । वह पुद्गल परमाणु और कैसा है? [पदेसमेत्तो य] और दूसरे आदि प्रदेशों का अभाव होने से प्रदेशमात्र है । और वह कैसा है? [सयमसद्दो य] स्वयं प्रकट-रूप से अशब्द है । इन तीन विशेषणों से सहित होता हुआ [णिद्धो वा लुक्खो वा] जिसकारण स्निग्ध अथवा रूक्ष रूप से सम्भव होता है - परिणमित होता है, उस कारण [दुपदेसादित्तमणुभवदि] दो प्रदेश आदि रूप बन्ध का अनुभव करता है ।
वह इसप्रकार - जैसे शुद्ध-बुद्ध स्वभाव द्वारा यह आत्मा बन्ध रहित होने पर भी, पश्चात् अशुद्धनय से स्निग्ध के स्थानीय रागभाव तथा रूक्ष के स्थानीय द्वेष-भावरूप से जब परिणमित होता है, तब परमागम में कही गयी विधि से बन्ध का अनुभव करता है; उसीप्रकार परमाणु भी स्वभाव से बन्ध रहित होने पर भी, जब बन्ध के कारण-भूत स्निग्ध-रूक्ष गुण-रूप से परिणमित होता है, तब दूसरे पुद्गल के साथ विभाव पर्याय-रूप बन्ध का अनुभव करता है - ऐसा अर्थ है ॥१७५॥