GP:प्रवचनसार - गाथा 169 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
कर्मरूप परिणमित होने की शक्तिवाले पुद्गलस्कंध तुल्य (समान) क्षेत्रावगाह जीव के परिणाममात्र का, जो कि बहिरंग साधन (बाह्यकारण) है, उसका आश्रय करके, जीव उनको परिणमाने वाला न होने पर भी, स्वयमेव कर्मभाव से परिणमित होते हैं । इससे निश्चित होता है कि पुद्गलपिण्डों को कर्मरूप करने वाला आत्मा नहीं है ।