GP:प्रवचनसार - गाथा 16 - अर्थ
From जैनकोष
[तथा] इसप्रकार [सः आत्मा] वह आत्मा [लब्धस्वभाव:] स्वभाव को प्राप्त [सर्वज्ञ:] सर्वज्ञ [सर्वलोकपतिमहित:] और *सर्व (तीन) लोक के अधिपतियों से पूजित [स्वयमेव भूत:] स्वयमेव हुआ होने से [स्वयंभू: भवति] 'स्वयंभू' है [इति निर्दिष्ट:] ऐसा जिनेन्द्रदेव ने कहा है ॥१६॥
*सर्वलोक के अधिपति = तीनों लोक के स्वामी - सुरेन्द्र, असुरेन्द्र और चक्रवर्ती