GP:प्रवचनसार - गाथा 194 - अर्थ
From जैनकोष
[यः] जो [एवं ज्ञात्वा] ऐसा जानकर [विशुद्धात्मा] विशुद्धात्मा होता हुआ [परमात्मानं] परम आत्मा का [ध्यायति] ध्यान करता है, [सः] वह [साकार: अनाकार:] साकार हो या अनाकार [मोहदुर्ग्रंथि] मोहदुर्ग्रंथि का [क्षपयति] क्षय करता है ।