GP:प्रवचनसार - गाथा 198 - अर्थ
From जैनकोष
[अनक्षः अनिन्द्रिय] और [अक्षातीत: भूत:] इन्द्रियातीत हुआ आत्मा [सर्वाबाधवियुक्त:] सर्व बाधा रहित और [समंतसर्वाक्षसौख्यज्ञानाढ:] सम्पूर्ण आत्मा में समंत (सर्वप्रकार के, परिपूर्ण) सौख्य तथा ज्ञान से समृद्ध वर्तता हुआ [परं सौख्यं] परम सौख्य का [ध्यायति] ध्यान करता है ।