GP:प्रवचनसार - गाथा 19 - अर्थ
From जैनकोष
[प्रक्षीणघातिकर्मा] जिसके घाति-कर्म क्षय हो चुके हैं, [अतीन्द्रिय: जात:] जो अतीन्द्रिय हो गया है, [अनन्तवरवीर्य:] अनन्त जिसका उत्तम वीर्य है और [अधिकतेजा:] अधिक (उत्कृष्ट) जिसका [केवल-ज्ञान और केवल-दर्शनरूप] तेज है [सः] ऐसा वह (स्वयंभू आत्मा) [ज्ञानं सौख्यं च] ज्ञान और सुख-रूप [परिणमति] परिणमन करता है ॥१९॥