GP:प्रवचनसार - गाथा 219 - अर्थ
From जैनकोष
[अथ] अब (उपधि के संबंध में ऐसा है कि), [कायचेष्टायाम्] कायचेष्टापूर्वक [जीवे मृते] जीव के मरने पर [बन्ध:] बंध [भवति] होता है [वा] अथवा [न भवति] नहीं होता; (किन्तु) [उपधे:] उपधि से-परिग्रह से [ध्रुवम् बंध:] निश्चय ही बंध होता है; [इति] इसलिये [श्रमणा:] श्रमणों (अर्हन्तदेवों) ने [सर्वं] सर्व परिग्रह को [त्यक्तवन्तः] छोड़ा है ।