GP:प्रवचनसार - गाथा 232 - अर्थ
From जैनकोष
[श्रमण:] श्रमण [ऐकाग्रगतः] एकाग्रता को प्राप्त होता है; [ऐकाग्र] एकाग्रता [अर्थेषु निश्चितस्य] पदार्थों के निश्चयवान् के होती है; [निश्चिति:] (पदार्थों का) निश्चय [आगमत:] आगम द्वारा होता है; [ततः] इसलिये [आगमचेष्टा] आगम में व्यापार [ज्येष्ठा] मुख्य है ।