GP:प्रवचनसार - गाथा 240 - अर्थ
From जैनकोष
[पंचसमिति:] पाँच समितियुक्त, [पंचेन्द्रिय-संवृत:] पांच इन्द्रियों का संवर वाला [त्रिगुप्त:] तीन गुप्ति सहित, [जितकषाय:] कषायों को जीतने वाला, [दर्शनज्ञानसमग्र:] दर्शनज्ञान से परिपूर्ण [श्रमण:] ऐसा जो श्रमण [सः] वह [संयत:] संयत [भणितः] कहा गया है ॥२४०॥