GP:प्रवचनसार - गाथा 262 - अर्थ
From जैनकोष
[गुणाधिकाना हि] गुणों में अधिक (श्रमणों) के प्रति [अभ्युत्थानं] अभ्युत्थान, [ग्रहणं] ग्रहण (आदर से स्वीकार), [उपासनं] उपासन (सेवा), [पोषणं] पोषण (उनके अशन, शयनादि की चिन्ता), [सत्कार:] सत्कार (गुणों की प्रशंसा), [अञ्जलिकरणं] अंजलि करना (विनयपूर्वक हाथ जोड़ना) [च] और [प्रणाम:] प्रणाम करना [इह] यहाँ [भणितम्] कहा है ।