GP:प्रवचनसार - गाथा 271 - अर्थ
From जैनकोष
[ये] जो [समये] भले ही समय में हों (भले ही वे द्रव्यलिंगी के रूप में जिनमत में हों) तथापि वे [एते तत्त्वम्] यह तत्त्व है (वस्तुस्वरूप ऐसा ही है) [इति निश्चिता:] इस प्रकार निश्चयवान वर्तते हुए [अयथागृहीतार्था:] पदार्थों को अयथार्थरूप से ग्रहण करते हैं (जैसे नहीं हैं वैसा समझते हैं), [ते] वे [अत्यन्तफलसमृद्धम्] अत्यन्तफलसमृद्ध (अनन्त कर्मफलों से भरे हुए) ऐसे [अत: परं कालं] अब से आगामी काल में [भ्रमन्ति] परिभ्रमण करेंगे ।