GP:प्रवचनसार - गाथा 272 - अर्थ
From जैनकोष
[यथार्थपदनिश्चित:] जो जीव यथार्थतया पदों का तथा अर्थों (पदार्थों) का निश्चय वाला होने से [प्रशान्तात्मा] प्रशान्तात्मा है और [अयथाचारवियुक्त:] अयथाचार (अन्यथाआचरण, अयथार्थआचरण) रहित है, [सः संपूर्णश्रामण्य:] वह संपूर्ण श्रामण्य वाला जीव [अफले] अफल (कर्मफल रहित हुए) [इह] इस संसार में [चिर न जीवति] चिरकाल तक नहीं रहता (अल्पकाल में ही मुक्त होता है ।)