GP:प्रवचनसार - गाथा 37 - अर्थ
From जैनकोष
[तासाम् द्रव्यजातीनाम्] उन (जीवादि) द्रव्य-जातियों की [ते सर्वे] समस्त [सदसद्भूता: हि] विद्यमान और अविद्यमान [पर्याया:] पर्यायें [तात्कालिका: इव] तात्कालिक (वर्तमान) पर्यायों की भाँति, [विशेषत:] विशिष्टता-पूर्वक (अपने-अपने भिन्न-भिन्न स्वरूप में) [ज्ञाने वर्तन्ते] ज्ञान में वर्तती हैं ॥३७॥