GP:प्रवचनसार - गाथा 41 - अर्थ
From जैनकोष
[अप्रदेशं] जो ज्ञान अप्रदेश को, [सप्रदेशं] सप्रदेश को, [मूर्तं] मूर्त को, [अमूर्त: च] और अमूर्त को तथा [अजातं] अनुत्पन्न [च] और [प्रलयंगतं] नष्ट [पर्यायं] पर्याय को [जानाति] जानता है, [तत् ज्ञानं] वह ज्ञान [अतीन्द्रियं] अतीन्द्रिय [भणितम्] कहा गया है ॥४१॥