GP:प्रवचनसार - गाथा 56 - अर्थ
From जैनकोष
[स्पर्श:] स्पर्श, [रस: च] रस, [गंध:] गंध, [वर्ण:] वर्ण [शब्द: च] और शब्द [पुद्गला:] पुद्गल हैं, वे [अक्षाणां भवन्ति] इन्द्रियों के विषय हैं [तानि अक्षाणि] (परन्तु) वे इन्द्रियाँ [तान्] उन्हें (भी) [युगपत्] एक साथ [न एव गृह्णन्ति] ग्रहण नहीं करतीं (नहीं जान सकतीं) ॥५६॥