GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 132
From जैनकोष
विद्यादर्शन-शक्ति-स्वास्थ्यप्रह्लादतृप्तिशुद्धियुज:
निरतिशया निरवधयो, नि:श्रेयसमावसन्ति सुखम् ॥132॥
विद्यादर्शन-शक्ति-स्वास्थ्यप्रह्लादतृप्तिशुद्धियुज:
निरतिशया निरवधयो, नि:श्रेयसमावसन्ति सुखम् ॥132॥