GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 18 - टीका हिंदी
From जैनकोष
जैनशासन के माहात्म्य का प्रकाशन एवं उसके तप-ज्ञानादि का अतिशय प्रकट करना चाहिये तथा जैनधर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों में अभिषेक, दान, पूजा, विधान, तप, मन्त्र-तन्त्रादि के विषय में अपनी आत्मशक्ति को न छिपाकर इनके विषय में जो अज्ञानरूप अन्धकार फैल रहा है, उसको दूर करते हुए तप-ज्ञानादि का अतिशय प्रकट करना प्रभावना अङ्ग कहलाता है ।