GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 28 - टीका हिंदी
From जैनकोष
चाण्डाल कुल में उत्पन्न होने पर भी यदि कोई पुरुष सम्यग्दर्शन से सम्पन्न है तो वह आदर सत्कार के योग्य है, ऐसा गणधरादिक देव कहते हैं । क्योंकि 'देवा वि तस्स पणमन्ति जस्स धम्मे सया मणो' जिसका मन सदा धर्म में लगा रहता है उसे देव भी नमस्कार करते हैं, ऐसा कहा गया है । अतएव ऐसे व्यक्ति का तेज भस्म से प्रच्छादित अंगारे के भीतरी तेज के समान निर्मलता से युक्त है ।