GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 35 - टीका हिंदी
From जैनकोष
'सम्यग्दर्शनेन शुद्धा: सम्यग्दर्शनशुद्धा:' अथवा 'सम्यग्दर्शनं शुद्धं निर्मलं येषां ते सम्यग्दर्शनशुद्धा:' इस समास के अनुसार जो सम्यग्दर्शन से शुद्ध है अथवा जिनका सम्यग्दर्शन शुद्ध-निर्मल है ऐसे जीव, जिन्होंने सम्यग्दर्शन होने के पहले आयु बांध ली है उन बद्धायुष्कों को छोडक़र नारकत्व, तिर्यंचत्व, नपुंसकत्व और स्त्रीत्व को प्राप्त नहीं होते तथा नीचकुलता, दुष्कुलता-दुष्कुल में उत्पत्ति, विकृतता-काणा, लूला आदि विकृतरूप वाला, अल्पायुष्कता-अन्तर्मुहूर्तादि अल्प आयु वाला, दरिद्रता-दरिद्रकुल में भी उत्पत्ति नहीं होती है । जब व्रतरहित अव्रतसम्यग्दृष्टि का इतना माहात्म्य है तब सम्यग्दृष्टि व्रती तो सातिशय पुण्य का बन्ध करते ही हैं, उनकी महिमा का तो कहना ही क्या है ?