GP:रत्नकरंड श्रावकाचार - श्लोक 78 - टीका हिंदी
From जैनकोष
द्वेष के वश किसी के मर जाने, बन्धन प्राप्त होने का अथव अंग-उपांगादि छिद जाने का और राग के कारण परस्त्री आदि का आध्यान बार-बार चिन्तन करना सो अपध्यान नामक अनर्थदण्ड है । ऐसा जिनशासन के ज्ञाता पुरुष कहते हैं ।