अंतरोपनिधा
From जैनकोष
षट्खंडागम/11/4,2,6/ सूत्र 252 व टीका/352 तेसिं दुविधा सेडिपरूवणा अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा।252। जत्थ णिरंतरं थोवबहुत्तपरिक्खा कीरदे सा अणंतरोवणिधा। जत्थ दुगुण-चदुगुणादि परिक्खा कीरदि सा परंपरोवणिधा।=श्रेणी प्ररूपणा दो प्रकार की है - अनंतरोपनिधा और परंपरोपनिधा।252। ( धवला 10/4,2,4,28/63/1 ) जहाँ पर निरंतर अल्पबहुत्व की परीक्षा की जाती है वह अनंतरोपनिधा कही जाती है। जहाँ पर दुगुणत्व और चतुर्गुणत्व आदि की परीक्षा की जाती है वह परंपरोपनिधा कहलाती है।
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