अन्योन्याभ्यस्तराशि
From जैनकोष
गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 937/1137
इट्ठसलायपमाणे दुगसंवग्गे कदेदु इट्ठस्स। पयडिस्स य अण्णोण्णाभत्थपमाणं हवे णियमा।
= अपनी-अपनी इष्ट शलाका जो नाना गुणहानि शलाका तीहिं प्रमाण दोयके अंक मांडि परस्पर गुणै अपनी इष्ट प्रकृतिका अन्योन्याभ्यास्त राशिका प्रमाण ही है।
( गोम्मटसार कर्मकांड/ भाषा/922/1106/3) ( गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/59/156/9/) (विशेष देखें गणित - II.6.2)।
2. प्रत्येक कर्मकी अन्योन्याभ्यस्त राशि-देखें गणित - II.6.4।