अप्रत्याख्यानक्रिया
From जैनकोष
आस्रवकारी पांच क्रियाओं में एक क्रिया― कर्मोदय के वशीभूत होकर पापों से निवृत्त नहीं होना । क्रोध, मान, माया, और लोभ के भेद से इसके चार भेद होते हैं । महापुराण 8.224-241, हरिवंशपुराण - 58.82 देखें सांपरायिकआस्रव
आस्रवकारी पांच क्रियाओं में एक क्रिया― कर्मोदय के वशीभूत होकर पापों से निवृत्त नहीं होना । क्रोध, मान, माया, और लोभ के भेद से इसके चार भेद होते हैं । महापुराण 8.224-241, हरिवंशपुराण - 58.82 देखें सांपरायिकआस्रव