अरि
From जैनकोष
धवला पुस्तक 1/1,1,1/42/9
नरकतिर्यक्कुमानुष्यप्रेतावासगताशेषदुःखप्राप्तिनिमित्तत्वादरिर्मोहः।
= नरक, तिर्यंच, कुमानुष और प्रेत इन पर्यायों में निवास करने से होने वाले समस्त दुःखों की प्राप्ति का निमित्त कारण होने से मोह को `अरि' अर्थात् शत्रु कहते हैं।
(विशेष देखें मोहनीय - 1.5)