अविरुद्धोपलब्धि हेतु
From जैनकोष
हेतु के प्रधान दो भेद होते हैं - उपलब्धि और अनुपलब्धि। उपलब्धिरूप हेतु के दो भेद हैं - अविरुद्ध और विरुद्ध। अविरुद्धरूप उपलब्धि के छह भेद निम्न प्रकार हैं।
परीक्षामुख/3/65-70
परिणामी शब्द: कृतकत्वात्, य एवं, स एवं दृष्टो, यथा घट:, कृतकश्चायं, तस्मात्परिणामी, यस्तु न परिणामी स न कृतको दृष्टो यथा बंध्यास्तनंधय:, कृतकश्चायं तस्मात्परिणामी।65। अस्त्यत्र देहिनि बुद्धिर्व्याहारादे:।66। अस्त्यत्र छाया छत्रात् ।67। उदेष्यति शकटं कृतिकोदयात् ।68। उदगाद्भरणि: प्राक्तत एव।69। अस्त्यत्र मातुलिंगे रूपं रसात् ।70।
विधिरूप या अविरुद्धरूप उपलब्धि
- शब्द परिणामी है क्योंकि वह किया हुआ है, जो-जो पदार्थ किया हुआ होता है वह-वह परिणामी होता है; जैसे - घट। शब्द किया हुआ है इसलिए परिणामी है, जो परिणामी नहीं होता वह-वह किया हुआ भी नहीं होता जैसे-बाँझ का पुत्र। यह शब्द किया हुआ है, इसलिए वह परिणामी है।65।
- इस प्राणी में बुद्धि है, क्योंकि यह चलता आदि है।66।
- यहाँ छाया है क्योंकि छाया का कारण छत्र मौजूद है।67।
- मुहूर्त के पश्चात् शकट (रोहिणी) का उदय होगा क्योंकि इस समय कृत्तिका का उदय है।68।
- भरणी का उदय हो चुका क्योंकि इस समय कृत्तिका का उदय है।69।
- इस मातुलिंग (पपीता) में रूप है क्योंकि इसमें रस पाया जाता है।70।