अष्ट मध्यप्रदेश
From जैनकोष
1. जीव के आठ अचल मध्यप्रदेश
राजवार्तिक/5/8/16/451/13 में उद्धृत—सर्वकालं जीवाष्टमध्यप्रदेशा निरपवादा: सर्वजीवानां स्थिता एव, ...व्यायामदु:खपरितापोद्रेकपरिणतानां जीवानां यथोक्ताष्टमध्यप्रदेशवर्जितानाम् इतरे प्रदेशा: अस्थिता एव, शेषाणां प्राणिनां स्थिताश्चास्थिताश्च’ इति वचनान्मुख्या: एव प्रदेशा:। =जीव के आठ मध्यप्रदेश सदा निरपवाद रूप से स्थित ही रहते हैं। व्यायाम के समय या दु:ख परिताप आदि के समय जीवों के उक्त आठ मध्यप्रदेशों को छोड़कर बाकी प्रदेश अस्थित होते हैं। शेष जीवों के स्थित और अस्थित दोनों प्रकार के हैं। अत: ज्ञात होता है कि द्रव्यों के मुख्य ही प्रदेश हैं, गौण नहीं।
अधिक जानकारी हेतु देखें जीव 4.2
2. लोक के आठ मध्य प्रदेश
राजवार्तिक/1/20/12/76/13 मेरुप्रतिष्ठवज्रवैडूर्यपटलांतररुचकसंस्थिता अष्टावाकाशप्रदेशलोकमध्यम्। =मेरू पर्वत के नीचे वज्र व वैडूर्य पटलों के बीच में चौकोर संस्थानरूप से अवस्थित आकाश के आठ प्रदेश लोक का मध्य हैं।
अधिक जानकारी हेतु देखें लोकसामान्य निर्देश 2.5