असंबद्ध प्रलाप
From जैनकोष
देखें वचन
1. राजवार्तिक/1/20/12/75/10
वाक्प्रयोगः शुभेतरलक्षणो वक्ष्यते। अभ्याख्यानकलहपैशुन्या- संबद्धप्रलापरत्यपरत्युपधिनिकृत्यप्रणतिमोषसम्यङ्मिथ्यादर्शनात्मिका भाषा द्वादशधा। = शुभ और अशुभ के भेद से वाक्प्रयोग दो प्रकार का है। अभ्याख्यान, कलह, पैशुन्य, असंबद्धप्रलाप, रति, अरति, उपधि, निकृति, अप्रणति, मोष, सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन के भेद से भाषा 12 प्रकार की है। ( धवला 1, 1, 2/116/10 ); ( धवला 9/4, 1, 45/217/1 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/जीवतत्त्व प्रदीपिका/365/778/20 )
2. अभ्याख्यान आदि भेदों के लक्षण
राजवार्तिक/1/20/12/75/12
धर्मार्थकाममोक्षासंबद्धा, वाग् असंबद्धप्रलापः।
= धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चार पुरुषार्थों के संबंध से रहित वचन असंबद्ध प्रलाप है।