आलाप
From जैनकोष
गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 707/1149/14
गुणस्थाने चतुर्दशमार्गणास्थाने च प्रसिद्धे विंशतिविधानां गुणजीवेत्यादीनां सामान्यपर्याप्तापर्याप्तास्त्रः आलापा भवंति। तथा वेदकषायविभिन्नेषु अनिवृत्तिकरणपंचभागेषु अपि पृथक् पृथक् भवंति।
गोम्मट्टसार जीवकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 709/11
तत्रापर्याप्तालापः लब्ध्यपर्याप्तः निवृत्यपर्याप्तश्चेति द्विविधो भवति।
= ओघ जो गुणस्थान और चौदह मार्गणा स्थान ये परमागम विषैं प्रसिद्ध हैं। सो इनिविषैं `गुणजीवापज्जती' (पंचसंग्रह / प्राकृत / अधिकार 1/2) इत्यादिक बीस प्ररूपणानिका सामान्य पर्याप्त, अपर्याप्त ए तीन आलाप हो हैं। बहुरि वेद अर कषाय करि भेद हैं जिन विषैं ऐसे अनिवृत्तिकरण के पाँच भाग तिनि विषैं पाँच आलाप जुदे जुदे जानना। (वें पाँच इस प्रकार हैं-सवेद भाग, सक्रोध भाग, समान भाग, समाया भाग, बादर कृष्टि लोभ भाग।) तहाँ अपर्याप्त आलाप दो प्रकारका है-लब्ध्यपर्याप्त निवृत्यपर्याप्त।