उत्सर्ग समिति
From जैनकोष
मूलाचार/15,321-325 एगंते अच्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे। उच्चारादिच्चओ पदिठावणिया हवे समिदी।15। वणदाहकिसिमसिकदे थंडिल्लेणुपरोधे वित्थिण्णे। अवगदजंतु विवित्ते उच्चारादी विसज्जेज्जो।321। उच्चारं पस्सवण्णं खेलं सिंघाणयादियं दव्वं। अच्चितभूमिदेसे पडिलेहित्ता विसज्जेज्जो।322। रादो दु पमज्जित्ता पण्णसमणपेक्खिदम्मि ओगासे। आसंकविसुद्धीए अपहत्थगफासणं कुज्जा।323। जदि तं हवे असुद्धं विदियं तदियं अणुण्णवे साहू। लघुए अणिछायारे ण देज्ज साधम्मिए गुरुयो।324। पदिठवणासमिदीवि य तेणेव कमेण वण्णिदा होदि। वोसरणिज्जं दव्वं कुथंडिले वोसरत्तस्स।325। =1. एकांतस्थान, अचित्तस्थान दूर, छिपा हुआ, बिल तथा छेदरहित चौड़ा, और जिसकी निंदा व विरोध न करे ऐसे स्थान में मूत्र, विष्ठा आदि देह के मल का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति कही गयी है।15। ( नियमसार/65 ), ( ज्ञानार्णव/18/14 )। 2. दावाग्नि से दग्धप्रदेश, हलकर जुता हुआ प्रदेश, मसान भूमि का प्रदेश, खार सहित भूमि, लोग जहाँ रोकें नहीं, ऐसा स्थान, विशाल स्थान, त्रस जीवोंकर रहित स्थान, जनरहित स्थान - ऐसी जगह मूत्रादि का त्याग करे।321। ( भगवती आराधना/1199 ), ( तत्त्वसार/6/11 ) ( अनगारधर्मामृत/4/169/497 ) 3. विष्ठा, मूत्र, कफ, नाक का मैल, आदि को हरे तृण आदि से रहित प्रासुक भूमि में अच्छी तरह देखकर निक्षेपण करे।322। रात्रि में आचार्य के द्वारा देखे हुए स्थान को आप भी देखकर मूत्रादि का क्षेपण करे। यदि वहाँ सूक्ष्म जीवों की आशंका हो तो आशंका की विशुद्धि के लिए कोमल पीछी को लेकर हथेली से उस जगह को देखे।323। यदि पहला स्थान अशुद्ध हो तो दूसरा, तीसरा आदि स्थान देखे। किसी समय रोग पीड़ित होके अथवा शीघ्रता से अशुद्ध प्रदेश में मल छूट जाये तो उस धर्मात्मा साधु को प्रायश्चित्त न दे।324। ( अनगारधर्मामृत/4/169 ) उसी कहे हुए क्रम से प्रतिष्ठापना समिति भी वर्णन की गयी है उसी क्रम से त्यागने योग्य मल-मूत्रादि को उक्त स्थंडिल स्थान में निक्षेपण करें। उसी के प्रतिष्ठापना समिति शुद्ध है।325।
राजवार्तिक/9/5/8/594/28 स्थावराणां जंगमानां च जीवादीनाम् अविरोधेनांगमलनिर्हरणं शरीरस्य च स्थापनम् उत्सर्गसमितिरवगंतव्या। =जहाँ स्थावर या जंगम जीवों को विराधना न हो ऐसे निर्जंतु स्थान में मल-मूत्र आदिका विसर्जन करना और शरीर का रखना उत्सर्ग समिति है। ( चारित्रसार/74/3 )।
प्रतिष्ठापना समिति - देखें समिति - 1।