उद्वेलन
From जैनकोष
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/349/503/2 वल्वजरज्जुभावविनाशवत् प्रकृतेरुद्वेल्लनं भागाहारेणापकृष्य परप्रकृतितां नीत्वा विनाशनमुद्वेल्लनं।349। = जैसे जेवड़ी (रस्सी) के बटने में जो बल दिया था पीछे उलटा घुमाने से वह बल निकाल दिया। इसी प्रकार जिस प्रकृति का बंध किया था, पीछे परिणाम विशेष से भागाहार के द्वारा अपकृष्ट करके, उसको अन्य प्रकृतिरूप परिणमा के उसका नाश कर दिया (फल-उदय में नहीं आने दिया, पहले ही नाश कर दिया।) उसे उद्वेलन संक्रमण कहते हैं।
विशेष देखें संक्रमण - 4।