एकत्व विक्रिया
From जैनकोष
राजवार्तिक/2/47/4/152/7 सा द्वेधा-एकत्वविक्रिया पृथक्त्वविक्रिया चेति। तत्रैकत्वविक्रिया स्वशरीरादपृथग्भावेन सिंहव्याघ्रहंसकुररादिभावेन विक्रिया। पृथक्त्वविक्रिया स्वशरीरादन्यत्वेन प्रासादमंडपादिविक्रिया। = वह विक्रिया दो प्रकार की है–एकत्व व पृथक्त्व। तहाँ अपने शरीर को ही सिंह, व्याघ्र, हिरण, हंस आदि रूप से बना लेना एकत्व विक्रिया है और शरीर से भिन्न मकान, मंडप आदि बना देना पृथक्त्व विक्रिया है।
अधिक जानकारी के लिये देखें वैक्रियिक ।