काम तत्त्व
From जैनकोष
ज्ञानार्णव/21/16 सकलजगच्चमत्कारिकार्मुकास्पदनिवेशितमंडलीकृतरसेक्षुकांडस्वरसहितकुसुमसायकविधिलक्ष्यीकृत ....स्फुरन्मकरकेतु:। कमनीयसकलललनावृंदवंदितसौंदर्यरतिकेलिकलापदुर्ललितचेताश्चतुरश्चेष्टितभ्रूभंगमात्रवशीकृतजगत्त्रयस्त्रैणसाधने....स्त्रीपुरूषभेदभिन्नसमस्तसत्त्वपरस्परमन:संघटनसूत्रधार:। ....संगीतकप्रियेण ... स्वर्गापवर्गद्वारसंविघटनवज्रार्गल:। ....क्षोभणादिमुद्राविशेषशाली। सकलजगद्वशीकरणसमर्थ: इति ....कामतत्त्वम्। =सकल जगत् चमत्कारी, खींचकर कुंडलाकार किये हुए इक्षुकांड के धनुष व उन्मादन, मोहन, संतापन, शोषण और मारणरूप पाँच बाणों से निशाना बाँध रखा है जिसने, स्फुरायमान मकर की ध्वजावाला, कमनीय स्त्रियों के समूह द्वारा वंदित है सुंदरता जिसकी ऐसी रति नामा स्त्री के साथ केलि करता हुआ, चतुरों की चेष्टारूप भ्रूभंगमात्र से वशीभूत किया स्त्रियों का समूह ही है साधन सेना जिसके, स्त्री-पुरूष के भेद से भिन्न समस्त प्राणियों के मन मिलाने के लिए सूत्रधार, संगीत है प्रिय जिसको, स्वर्ग व मोक्ष के द्वार में वज्रमयी अर्गले के समान, चित्त को चलाने के लिए मुद्राविशेष बनाने में चतुर, ऐसा समस्त जगत् को वशीभूत करने में समर्थ कामतत्त्व है।–देखें ध्यान - 4.5 यह काम-तत्त्व वास्तव में आत्मा ही है।