कारु
From जैनकोष
शूद्रवर्ण का एक भेद । ये स्पृश्य और अस्पृश्य दोनों होते हैं । इनमें नाई, धोबी आदि स्पृश्य हैं । वे समाज के साथ रहते हैं । अस्पृश्य कारु समाज से दूर रहते हैं और समाज से दूर रहते हुए ही अपना निर्दिष्ट कार्य करते हैं । महापुराण 16.185-186