कुपात्र
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
वसुनंदी श्रावकाचार/223 वय-तव-सीलसमग्गो सम्मत्तविवज्जियो कुपत्तं तु। 223। = जो व्रत, तप और शील से संपन्न है, किंतु सम्यग्दर्शन से रहित है, वह कुपात्र है।
देखें पात्र ।
पुराणकोष से
मिथ्यादर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या चारित्र के धारक । हरिवंशपुराण - 7.114