खातिका
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति/4/ गाथा का भावार्थ
- 1. समवसरण के स्वरूप में 31 अधिकार हैं - सामान्य भूमि, सोपान, विन्यास, वीथी, धूलिशाल, (प्रथमकोट) चैत्यप्रासाद भूमियाँ, नृत्यशाला, मानस्तंभ, वेदी, खातिका भूमि, वेदी, लताभूमि, साल (द्वितीय कोट), उपवनभूमि, नृत्यशाला, वेदी, ध्वजभूमि, साल (तृतीय-कोट), कल्पभूमि, नृत्यशाला, वेदी, भवनभूमि, स्तूप, साल (चतुष्क कोट), श्रीमंडप, ऋषि आदि गण, वेदी, पीठ, द्वितीय-पीठ, तृतीय पीठ, और गंधकूटी।712-715। ......9. इस प्रथम चैत्यप्रासादभूमि से आगे, प्रथम वेदी है, जिसका संपूर्ण कथन धूलिशालकोटवत् जानना।792-793। 10. इस वेदी से आगे खातिका भूमि है।795। जिसमें जल से पूर्ण खातिकाएँ हैं।796। ......।829-833।
समवशरण की द्वितीय भूमि–देखें समवशरण ।