गौण
From जैनकोष
स्वयंभू स्तोत्र/53 विवक्षितो मुख्यं इतीष्यतेऽन्यो गुणोऽविवक्षो। = जो विवक्षित होता है वह मुख्य कहलाता है, दूसरा जो अविवक्षित होता है वह गौण कहलाता है। ( स्वयंभू स्तोत्र/25 )
स्याद्वादमंजरी/7/63/22 अव्यभिचारी मुख्योऽविकलोऽसाधारणोऽंतरंगश्च। विपरीतो गौणोऽर्थ: सति मुख्ये धी: कथं गौणे। = अव्यभिचारी, अविकल, असाधारण और अंतरंग अर्थ को मुख्य कहते हैं और उससे विपरीत को गौण कहते हैं। मुख्य अर्थ के रहने पर गौण बुद्धि नहीं हो सकती।