ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 17
From जैनकोष
मिच्छादंसणमग्गे मलिणे अण्णाणमोहदोसेहिं ।
वज्झंति मूढजीवा १मिच्छत्तबुद्धिउदएण ॥१७॥
मिथ्यादर्शनमार्गे मलिने अज्ञानमोहदोषै: ।
बध्यन्ते मूढजीवा: मिथ्यात्वाबुद्ध्युदयेन ॥१७॥
आगे कहते हैं कि यह जीव अज्ञान और मिथ्यात्व के दोष से मिथ्यामार्ग में प्रवर्तन करता है ।
अर्थ - मूढ जीव अज्ञान और मोह अर्थात् मिथ्यात्व के दोषों से मलिन जो मिथ्यादर्शन अर्थात् कुमत के मार्ग में मिथ्यात्व और अबुद्धि अर्थात् अज्ञान के उदय से प्रवृत्ति करते हैं ।
भावार्थ - ये मूढजीव मिथ्यात्व और अज्ञान के उदय से मिथ्यामार्ग में प्रवर्तते हैं, इसलिए मिथ्यात्व अज्ञान का नाश करना यह उपदेश है ॥१७॥