ग्रन्थ:चारित्रपाहुड़ गाथा 29
From जैनकोष
अमणुण्णे य मणुण्णे सजीवदव्वे अजीवदव्वे य ।
ण करेदि रायदोसे पंचेंदियसंवरो भणिओ ॥२९॥
अमनोज्ञे च मनोज्ञे सजीवद्रव्ये अजीवद्रव्ये च ।
न करोति रागद्वेषौ पञ्चेन्द्रियसंवर: भणित: ॥२९॥
आगे पाँच इन्द्रियों के संवरण का स्वरूप कहते हैं -
अर्थ - अमनोज्ञ तथा मनोज्ञ ऐसे पदार्थ जिनको लोग अपने माने - ऐसे सजीवद्रव्य स्त्री पुत्रादिक और अजीवद्रव्य धन धान्य आदि सब पुद्गल द्रव्य आदि में रागद्वेष न करे, उसे पाँच इन्द्रियों का संवर कहा है ।
भावार्थ - इन्द्रियगोचर जीव अजीव द्रव्य है, ये इन्द्रियों के ग्रहण में आते हैं, इनमें यह प्राणी किसी को इष्ट मानकर राग करता है और किसी को अनिष्ट मानकर द्वेष करता है, इसप्रकार रागद्वेष मुनि नहीं करते हैं, उनके संयमचरण चारित्र होता है ॥२९॥