ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 90 - समय-व्याख्या
From जैनकोष
जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदोणण्णा । (90)
तत्तो अणण्णमण्णं आयासं अंतवदिरित्तं ॥98॥
अर्थ:
जीव, पुद्गलकाय, धर्म और अधर्म लोक अनन्य है, उस (लोक) से अनन्य और अन्य, अन्त रहित आकाश है।
समय-व्याख्या:
लोकाद्बहिराकाशसूचनेयम् ।
जीवादीनि शेषद्रव्याण्यवधृतपरिमाणत्वाल्लोकादनन्यान्येव । आकाशं त्वनन्तत्वाल्लोका-दनन्यदन्यच्चेति ॥९०॥
समय-व्याख्या हिंदी :
यह, लोक के बाहर (भी) आकाश होने की सूचना है ।
जीवादि शेष द्रव्य (आकाश के अतिरिक्त द्रव्य) मर्यादित परिमाण वाले होने के कारण लोक से १अनन्य ही हैं, आकाश तो अनन्त होने के कारण लोक से अनन्य तथा अन्य है ॥९०॥
१अनन्य = यहाँ यद्यपि सामान्य-रूप से पदार्थों का लोक से अनन्य-पना कहा है । तथापि निश्चय से अमूर्त-पना, केवल-ज्ञान-पना, सहज-परमानन्द-पना, नित्य-निरंजन-पना इत्यादि लक्षणों द्वारा जीवों को इतर द्रव्यों से अन्यपना है और अपने अपने लक्षणों द्वारा इतर द्रव्यों का जीवों से भिन्नपना है ऐसा समझना ।