ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 1 - सूत्र 25
From जैनकोष
221. यद्यस्य मन:पर्ययस्य प्रत्यात्ममयं विशेष:, अथानयोरवधिमन:पर्यययो: कुतो विशेष इत्यत आह –
221. यदि इस मन:पर्ययज्ञानका अलग-अलग यह भेद है तो अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञानमें किस कारणसे भेद है ? अब इसी बातके बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं –
विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमन:पर्यययो:।।25।।
विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषयकी अपेक्षा अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानमें भेद है।।25।।
222. विशुद्धि: प्रसाद:। क्षेत्रं यत्रस्थान्भावान्प्रतिपद्यते। स्वामी प्रयोक्ता। विषयो ज्ञेय:। तत्रावधेर्मन:पर्ययो विशुद्धतर:। कुत: ? सूक्ष्मविषयत्वात्। क्षेत्रमुक्तम्[1]। विषयो वक्ष्यते। स्वामित्वं प्रत्युत्यते। प्रकृष्टचारित्रगुणोपेतेषु वर्तते[2] प्रमत्तादिषु क्षीणकषायान्तेषु। तत्र चोत्पद्यमान: प्रवर्द्धमानचारित्रेषु न हीयमानचारित्रेषु। प्रवर्द्धमानचारित्रेषु चोत्पद्यमान: सप्तविधान्यतमर्द्धि-प्राप्तेषूपजायते नेतरेषु। ऋद्धिप्राप्तेषु केषुचिन्न सर्वेषु। [3]इत्यस्यायं स्वामिविशेषो। विशिष्टसंयमग्रहणं वा वाक्ये प्रकृतम्। अवधि: पुनश्चातुर्गतिकेष्विति स्वामिभेदादप्यनयोर्विशेष:।
222. विशुद्धिका अर्थ निर्मलता है। जिस स्थानमें स्थित भावोंको जानता है वह क्षेत्र है। स्वामीका अर्थ प्रयोक्ता है। विषय ज्ञेयको कहते हैं। सो इन दोनों ज्ञानोंमें अवधिज्ञानसे मन:पर्ययज्ञान विशुद्धतर है, क्योंकि मन:पर्ययज्ञानका विषय सूक्ष्म है। क्षेत्रका कथन पहले कर आये हैं। विषयका कथन आगे करेंगे। यहाँ स्वामीका विचार करते हैं – मन:पर्ययज्ञान प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थान तकके उत्कृष्ट चारित्रगुणसे युक्त जीवोंके ही पाया जाता है। वहाँ उत्पन्न होता हुआ भी वह वर्द्धमान चारित्रवाले जीवोंके ही उत्पन्न होता है, घटते हुए चारित्रवाले जीवोंके नहीं। वर्धमान चारित्रवाले जीवोंमें उत्पन्न होता हुआ भी सात प्रकारकी ऋद्धियोंमें-से किसी एक ऋद्धिको प्राप्त हुए जीवोंके ही उत्पन्न होता है, अन्यके नहीं। ऋद्धिप्राप्त जीवोंमें भी किन्हींके ही उत्पन्न होता है, सबके नहीं, इस प्रकार सूत्रमें इसका स्वामीविशेष या विशिष्ट संयमका ग्रहण प्रकृत है। परन्तु अवधिज्ञान चारों गतिके जीवोंके होता है, इसलिए स्वामियोंके भेदसे भी इनमें अन्तर है।
विशेषार्थ – यों तो अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानमें मौलिक अन्तर है। अवधिज्ञान सीधे तौरसे पदार्थोंको जानता है और मन:पर्ययज्ञान मनकी पर्यायरूपसे। फिर भी यहाँ अन्य आधारोंसे इन दोनों ज्ञानोंमें अन्तर दिखलाया गया है। वे आधार चार हैं – द्रव्य, क्षेत्र, स्वामी और विषय।