ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 51
From जैनकोष
360. यद्येवमवध्रियते, अर्थादापन्नमेतदुक्तेभ्योऽन्ये संसारिणस्त्रिलिङ्गा इति यत्रात्यन्तं[1] नपुंसक-लिङ्गस्याभावस्तत्प्रतिपादनार्थमाह -
360. यदि उक्त जीवों के नपुंसकवेद निश्चित होता है तो यह अर्थात् सिद्ध है कि इनसे इतिरिक्त अन्य संसारी जीव तीन वेद वाले होते हैं। इसमें भी जिनके नपुंसकवेद का अत्यन्त अभाव है उनका कथन करेन के लिए आगे का सूत्र कहते हैं –
न देवा:।।51।।
देव नपुंसक नहीं होते।।51।।
361. स्त्रैणं पौंस्नं च यन्निरतिशयसुखं[2] शुभगतिनामोदयापेक्षं तद्देवा अनुभवन्तीति न तेषु नपुंसकानि[3] सन्ति।
361. शुभगति नामकर्म के उदय से स्त्री और पुरुषसम्बन्धी जो निरतिशय सुख है उसका देव अनुभव करते हैं इसलिए उनमें नपुंसक नहीं होते।