चक्राभिषेक
From जैनकोष
गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में छियालीसवीं क्रिया । यह दिग्विजय के पश्चात् संपन्न होती है । इसमें चक्ररत्न को आगे करके चक्रवर्ती नगर में प्रवेश करता है और आनंदमंडप मे बैठकर किमिच्छक दान देता है । इस समय मांगलिक वाद्य बजते रहते हैं । और श्रेष्ठ कुलों के राजा चक्री का अभिषेक करते हैं । इसके पश्चात् प्रसिद्ध चार नृप उसे मांगलिक वेष धारण कराते हैं और मुकुट पहनाते हैं । हार, कुंडल आदि से विभूषित होकर वह यज्ञोपवीत धारण करता है । नगर-निवासी तथा मंत्री आदि उसका चरणाभिषेक कर चरणोदक मस्तक पर लगाते हैं । श्री, ह्री आदि देवियाँ अपने-अपने नियोगों के अनुसार उसकी उपासना करती हैं । महापुराण 38.62, 235-252