चारुदत्त
From जैनकोष
हरिवंशपुराण/21/ श्लोक नं.
भानुदत्त वैश्य का पुत्र (6-10); मित्रावती से विवाह हुआ (38); संसार से विरक्त रहता था (39); चाचा रुद्रदत्त ने उसे वेश्या में आसक्त कर दिया (40-64); अंत में तिरस्कार पाकर वेश्या के घर से निकला और अपने घर आया (64-74); व्यापार के लिए रत्नद्वीप में गया (75); मार्ग में अनेकों कष्ट सहे (112); वहाँ मुनिराज के दर्शन किये (113-126); बहुत धन लेकर घर लौटा (127)।