दु:खहरण
From जैनकोष
एक व्रत । इसमें सात भूमियों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा से चौदह, तिर्यंचगति और मानवगति के पर्याप्तक-अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा से चार-चार, सौधर्म से अच्युत स्वर्ग तक चौबीस-चौबीस, नौ ग्रैवेयकों के अठारह, नौ अनुदिशों के दो और पाँच अनुत्तर विमानों के दो इस प्रकार कुल अड़सठ उपवास किये जाते हैं । दो उपवासों के बाद एक पारणा करने से यह व्रत एक सौ दो दिन में पूर्ण होता है । हरिवंशपुराण - 34.117-120