निषद्यका
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
मूलाचार/124-125,139,144 दुविहो समाचारो ओघो विय पदविभागिओ चेव। दसहा ओघो भणिओ अणेगहा पदविभागी य।124। इच्छामिच्छाकारो तधाकारो य आसिआ णिसिही। आपुच्छा पडिपुच्छा छंदण सणिमंतणा य उपसंपा।125। उपसंपया य णेया पंचविहा जिणवरेहिं णिद्दिट्ठा। विणए खेत्ते मग्गे सुहदुक्खे चेय सुत्ते य।139। उपसंपया य सुत्ते तिविहा सुत्तत्थतदुभया चेव। एक्केक्का वि य तिविहा लोइय वेदे तहा समये।144। =समाचार दो प्रकार का है - औघिक व पदविभागी। औघिक के दश भेद हैं और पदविभागी के अनेक भेद हैं।124। औघिक समाचार के दश भेद हैं - इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, आसिका, निषेधिका, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छेदन, सनिमंत्रणा और उपसंयत।125। गुरुजनों के लिए आत्मसमर्पण करने वाला उपसंयत पाँच प्रकार का है - विनय में, क्षेत्र में, मार्ग में, सुख-दुख में, और सूत्र में कहना चाहिए।139। सूत्रोपसंयत तीन प्रकार का है - सूत्र अर्थ व तदुभय। यह एक-एक भी तीन तरह के हैं - लौकिक, वैदिक, व सामायिक।
पुराणकोष से
अंगबाह्यश्रुत का चौदहवाँ भेद । इस प्रकीर्णक में प्रायश्चित्त का वर्णन किया गया । हरिवंशपुराण - 2.105,10.138, देखें अंगबाह्य