पंचसंग्रह
From जैनकोष
(पं. सं./प्र. १४/A.N.Up) दिगम्बर आम्नाय में पंच-संग्रह के नाम से उल्लिखित कई ग्रन्थ उपलब्ध हैं। सभी कर्मसिद्धान्त विषयक हैं। उन ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है -
- दिगम्बर प्राकृत पंचसंग्रह- यह सबसे प्राचीन है। इसमें पाँच अधिकार हैं, १३२४ गाथाएँ हैं, और ५०० श्लोकप्रमाण गद्यभाग भी हैं। इस ग्रन्थ के कर्ता का नाम व समय ज्ञात नहीं, फिर भी वि.श. ५-८ का अनुमान किया जाता है। (पं.सं./प्र.३९/A.N.Up)
- श्वेताम्बर प्राकृतपंचसंग्रह- यह १००५ गाथा प्रमाण है। रचयिता ने स्वयं इस पर ८००० श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञवृत्ति लिखी है जिस पर मलयागिरि कृत एक संस्कृत टीका भी है। इसका रचनाकाल वि०श० १० है।
- दि० संस्कृत पंचसंग्रह प्रथम- पंचसंग्रह प्रा.१ के आधार पर आचार्य अमितगति ने वि० १०७३ (ई० १०१६) में रचा है। इसमें भी पाँच प्रकरण हैं तथा इसका प्रमाण १४५६ श्लोक पद्य व १००० श्लोक प्रमाण गद्य भाग हैं।
- दि० संस्कृत पंचसंग्रह द्वि०- पंचसंग्रह प्रा.१ के आधार पर श्रीपाल सुत श्री डड्ढा नाम के एक जैन गृहस्थ ने वि० श० ११ में रचा था। इसकी समस्त श्लोक संख्या १२४३ तथा गद्य भाग ७०० श्लोक प्रमाण है।
- पंचसंग्रह टीका- पंचसंग्रह नं. १ पर दो संस्कृत टीकायें उपलब्ध हैं - एक वि० १५२६ में किसी अज्ञात आचार्य द्वारा लिखित है और दूसरी वि० १९२० में सुमति कीर्ति भट्टारक द्वारा लिखित है। विविध ग्रन्थों से उद्धृत प्रकरणों का संग्रह होने से यह वास्तव में एक स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी है जिसे रचयिता ने ‘आराधना’ नाम दिया है। चूर्णियों की शैली में रचित ५४६ श्लोक प्रमाण तो इसमें गद्य भाग है और ४००० श्लोक प्रमाण पद्य भाग। अधिकार संख्या पांच ही है। आ० पद्मनन्दि कृत जंबू दीवपण्णति के एक प्रकरण को पूरा का पूरा आत्मसात कर लेने के कारण यह पद्मनन्दि कृत प्रसिद्ध हो गई है।
- इनके अतिरिक्त भी कुछ पंचसंग्रह प्रसिद्ध हैं। जैसे, गोमट्टसार का अपर नाम पंचसंग्रह है। श्री हरि दामोदर बेलंकर ने अपने जिन रत्नकोष में ‘पंचसंग्रह दीपक’ नाम के किसी ग्रन्थ का उल्लेख किया है जो कि उनके अनुसार गोमट्टसार का इन्द्र वामदेव कृत पद्यानुवाद है। विशेष देखें - परिशिष्ट।