पाठ:बाईस परीषह—आर्यिका ज्ञानमती
From जैनकोष
मैं तप तपता दीर्घकाल से, पर कुछ अतिशय नहीं दिखता
सुरजन अतिशय करते कहना, मात्र कथन ही है दिखता ॥
इस विध दृगधारी मुनि मन में, कलूष भावना ही रखते हैं
पर वांछा को छोड़ अदर्शन, परिषह नित मुनि सहते हैं ॥२२॥
(॥इति बाईस परीषह समाप्त:॥)