प्रशांतिक्रिया
From जैनकोष
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में इक्कीसवीं तथा दीक्षान्वय की अड़तालीस क्रियाओं में सोलहवीं क्रिया । इसमें विषयों से अनासक्त होकर अपने पुत्र को गृहस्थभार देने के पश्चात् नित्य स्वाध्याय तथा विविध उपवास आदि करते हुए शांति का मार्ग अपनाया जाता है । महापुराण 38.55-65, 148-149, 39.75