योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 120
From जैनकोष
कर्म को जीव का कर्ता मानने पर आपत्ति -
आत्मानं कुरुते कर्म यदि कर्म तदा कथम् ।
चेतनाय फलं दत्ते भुङ्क्ते वा चेतन: कथम् ।।१२०।।
अन्वय :- यदि कर्म आत्मानं कुरुते तदा कर्म चेतनाय फलं कथं दत्ते ? वा चेतन: (कर्म- फलं) कथं भुङ्क्ते ?
सरलार्थ :- यदि कर्म (अपने उपादान से) स्वयं को करता है तो फिर कर्म, चेतन-आत्माको फल कैसे देता है? और चेतनात्मा उस फलको कैसे भोगता है? - ये दोनों बातें फिर बनती ही नहीं ।