योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 362
From जैनकोष
श्रमण के २८ मूलगुण -
महाव्रत-समित्यक्षरोधा: स्यु: पञ्च चैकश: ।
परमावश्यकं षोढा, लोचोsस्नानमचेलता ।।३६२।।
अदन्तधावनं भूमिशयनं स्थिति-भोजनम् ।
एकभक्तं च सन्त्येते पाल्या मूलगुणा यते: ।।३६३।।
अन्वय :- महाव्रत-समिति-अक्षरोधा: एकश: पञ्च स्यु: । च षोढ़ा परमावश्यकं, लोच:, अस्नानं, अचेलता, अदन्तधावनं, भूमिशयनं, स्थिति भोजनं, च एकभक्तं एते यते: मूलगुणा: पाल्या: सन्ति ।
सरलार्थ :- अहिंसादि महाव्रत, ईर्यासमिति आदि समितियाँ, पाँच इंद्रियों के स्पर्शादि विषयों का निरोध - ये सभी पाँच-पाँच होते हैं और प्रतिक्रमणादि छह आवश्यक, सात इतर गुण - केशलोंच, अस्नान, अचेलता अर्थात् नग्नता, अदन्तधोवन, भूमिशयन, खड़े-खड़े करपात्र में भोजन और दिन में एक बार अनुद्दिष्ट भोजन - ये यति/मुनिराज के अट्ठाईस मुलगुण हैं; जिनका सदा पालन करना चाहिए ।